कुंजल क्रिया – Kunjal Kriya in Hindi
दोस्तो आज हम आपको कुंजल क्रिया ( Kunjal Kriya ) के बारे में बताने की कोशिश करेंगे. इस क्रिया को करने के अनेक फायदे है, लेकिन इस आसन को करने के फायदों के बारे में बहुत कम ही लोगो को पता है. इसलिए हम इस आर्टिकल में कुंजल क्रिया से जुड़ी सभी जानकारी देने की कोशिश करेंगे. ( योग मुद्रसाना )
आमाशय : आमाशय शरीर के अन्य अंगों की तुलना में ज्यादा समस्या उत्पन्न करता है. आमाशय समय-समय पर हमारा ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है. विशेषकर तब जब उसका कार्य ठीक से नहीं चलता है. लोग अपने आमाशय के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते हैं, हर प्रकार के रुचिकर-अरुचिकर, आवश्यक-अनावश्यक पदार्थ उस में डाले जाते हैं तथा उसके नाजक स्वभाव की अनदेखी करते हैं. ( वजरोली मुद्रा )
आमाशय का प्रमुख उद्देश्य : आंतों में पहुंचने से पूर्व भोजन का मंथन वा महिनीकरण करना है. आमाशय की दीवारों में लगभग 3.5 करोड़ ग्रंथियां होती है. यह ग्रंथियां पाचक रसों का स्त्राव करती है, जिन्हें ‘जेठा रसों’ के नाम से जाना जाता है.
जो आहार हम ग्रहण करते हैं, उसमें पाचन नहीं तो इन ग्रंथियों से दिन भर में कुछ लीटर रस स्थापित होकर अमाशय में प्रभावित होता है. इन रसों का प्रमुख घटक है हाइड्रोक्लोरिक अम्ल. भोजन को पचाने के लिए आमल आवश्यक है, परंतु साथ ही पेट संबंधी अनेक समस्याओं का कारण भी है जैसे अति अम्लता तथा अल्सर इत्यादि. ( संभावी मुद्रा )
कुंजल क्रिया क्या है? – kunjal kriya kya hai
आज लोगों में अपच कब्ज गैस दमा और सांस में दुर्गंध होना आम समस्या है. इन सभी समस्याओं पर श्रेष्ठक्रम के अंतर्गत आने वाले अभ्यास ‘कुंजल क्रिया’ से नियंत्रण पाया जा सकता है. यह एक नियम के तहत की जाने वाली अत्यंत सरल एवं सहज क्रिया है. जिसके द्वारा पेट संबंधी तमाम समस्याओं से बचा जा सकता है. (योनि मुद्रा )
कुंजल क्रिया ( kunjal kriya ) मुंह से लेकर आमाशय तक पाचन क्षेत्र को साफ करने की विधि है इस क्रिया में नमकीन कुनकुना जल पीना पड़ता है जब पेट पूरी तरह जल से भर जाता है, तब वामन करके जल को बाहर निकाल दिया जाता है. ( मंडूकासना )
जो कुछ भी वमन किया जाता है. उसमें नमक मिश्रित जल आमाशय के अशुद्ध पदार्थ मात्र होते हैं. इसे करने पर अरुचिकर स्वाद, दुर्गंध अथवा मिचिली का अनुभव नहीं होता, जैसा के विभिन्न रोगों के दौरान वमन करने पर होता है.
वास्तव में रोगों के दौरान यही संवेदनाएं वमन के कष्ट का अनुभव का कारण होती है. किंतु कुंजल एक नियम के तहत की जाने वाली सहज एवं सरल क्रिया है. ज्यादातर लोग अपने पेट के साथ दुर्व्यवहार करते हैं और अनेक समस्याओं को जन्म देते हैं. ( शीर्षासन )
आत: इस परिस्थिति में कुंजल क्रिया अत्यंत महत्वपूर्ण उपाय है, जिसके द्वारा पेट से संबंधित समस्याओं से बचा जा सकता है. किंतु यह जरूरी है कि इस क्रिया को शुरुआती दिनों में किसी योग्य योग प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए.
कुंजल क्रिया विधि – kunjal kriya steps in Hindi
नीचे हम आपको कुंजल क्रिया को करने की आसान विधि के बारे में बताएंगे. जिससे आपको इस क्रिया को करने में काफी आसानी हो. ( कपालभाती प्राणायाम )
- किसी होज, शौचालय या नाले के पास खड़े हो जाएं. अब तैयार पानी जल्दी-जल्दी 5 से 6 गिलास तब तक पिएं जब तक वमन की इच्छा ना होने लगे. यह अति आवश्यक है कि पानी पीते समय रुक रुक कर पानी नहीं पिया जाए.
- पानी पीने के बाद सामने झुके और धड़ को जितना संभव हो जमीन के समानांतर रखें.
- मुंह खोलें और दाहिने हाथ की मध्यमा और तर्जनी को जीभ के ऊपर रखकर अधिक से अधिक पीछे ले जाए.
- जीभ के पिछले भाग को हल्के से रगड़े और दवाएं. इससे वामन होगा और अमाशय का संपूर्ण जल वेग से बाहर आ जाएगा.
- अभ्यास के समय स्वाएं को पूर्णता: तनाव रहित बनाए रखें.
- जब पानी बाहर आना बंद हो जाए तब फिर से उंगलियों को मुंह के अंदर डालें और इस प्रक्रिया को दोहराते जाएं.
- अभ्यास के बाद दोनों नासिका को बारी-बारी से पांच पांच छिडक़ दें और अपने चेहरे को पानी से धो लें.
- यदि पानी का कुछ अंश अंदर रह भी जाए तो घबराना नहीं चाहिए क्योंकि. यह पानी सामान्य ढंग से शरीर संस्थान से बाहर निकल जाता है. ( ध्यान मुद्रा )
जल की तैयारी : कुंजल हेतु जल कुनकुना, लगभग शरीर के तापमान के बराबर होना चाहिए. इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जल ज्यादा ठंडा नहीं हो. अन्यथा सर्दी लगने का डर रहता है. जल स्वच्छ हो. जल में नमक की हल्की मात्रा डाली जाती है ताकि अम्लता में शीघ्र राहत मिले. ( भ्रामरी प्राणायाम )
1 लीटर पानी में नमक की मात्रा लगभग चाय के चम्मच के बराबर होनी चाहिए. कुंजल सादे पानी से भी किया जा सकता है किंतु नमक वाले पानी से ज्यादा लाभ होता है. एक व्यक्ति के लिए लगभग 3 लीटर पानी तैयार करना चाहिए।
नोट : कुंजल क्रिया की शुरुआत किसी योग्य प्रशिक्षक की देखरेख में ही करना चाहिए. ( सूर्य नमस्कार )
कुंजल क्रिया के अभ्यास का समय – kunjal kriya ka abhyas kab karna chahiye
kunjal kriya हमेशा प्रातः काल शौच के बाद और कुछ भी खाने के पूर्व किया जाना चाहिए. इस अभ्यास को सप्ताह में एक बार करना चाहिए. अभ्यास के पूरा होने के आधे घंटे बाद ही कुछ खाना चाहिए. तरल पदार्थ लेना ज्यादा लाभकारी होता है चाहे तो खिचड़ी भी खा सकते हैं. ( चंद्र नमस्कार )
कुंजल क्रिया के फायदे – kunjal kriya benefits in Hindi
kunjal kriya के अभ्यास से अपच, अम्लता और गैस की समस्याओं को समाप्त करता है. शरीर से अतिरिक्त कफ, बलगम आदि को निकालता है. सर्दी, खांसी, दमा और श्वसन संबंधी रोगों को भी दूर करता है. सांस की दुर्गंध भी मिट जाती है. चेहरे पर चमक आती है. इससे कुंठाए तथा भावनात्मक आवेग भी दूर होता है. जब भी आपका जी मिचलाने लगे. विशेषकर सुबह के समय कुंजल क्रिया करने से निश्चित ही राहत मिलेगी
कुंजल क्रिया के नुकसान – kunjal kriya side effect in Hindi
आम तौर पर देखा जाए, तो कुंजल क्रिया का अभ्यास करने के अनेक फायदे है. लेकिन आपकी जानकारी के लिए हम आपको बता दें कि इस आसन को करने के कुछ नुकसान भी है. अगर आप इस आसन को सही तरीके से नहीं करते है, तो इससे आपको कुछ नुकसान भी हो सकता है.
- आप जब कुंजल क्रिया का अभ्यास करें. उस समय पानी का सेवन बैठ कर करना चाहिए. खड़े होकर पानी का सेवन नहीं करना चाहिए.
- इस क्रिया को करने से पहले भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए.
- इसका अभ्यास आपको सुबह के समय करना चाहिए.
- यह अभ्यास उन लोगों को नहीं करना चाहिए जो हर्निया, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, दौरा पड़ना, पेप्टिक अल्सर एवं नेत्र समस्या सहित मधुमेह रोग से ग्रस्त हो. ऐसे व्यक्ति को कुंजल क्रिया का अभ्यास करने से पहले विशेषज्ञ की सलाह लेना चाहिए.
कुंजल क्रिया वीडियो – Kunjal Kriya video
Kunjal Kriya video in Hindi की जानकारी नीचे दी गई है.
नोट : Kunjal Kriya से जुड़ा कोई भी सवाल हो आपके पास तक आप हमसे कॉमेंट बॉक्स में लिखकर या हमारे email पर भेज सकते है. हम आपके सभी सवालों का जवाब देने की कोशिश करेंगे.